• Friday, 01 November 2024
मैं विक्रमशिला बोल रहा हूं : सुनिए मेरी कहानी सियासत से लेकर साहित्य तक, भाग-1

मैं विक्रमशिला बोल रहा हूं : सुनिए मेरी कहानी सियासत से लेकर साहित्य तक, भाग-1

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राहुल: राजनीतिक संपादक

गंगा किनारे बसे भागलपुर की गिनती ऐतिहासिक शहरों में होती है…। प्राचीनकाल में विक्रमशिला यूनिवर्सिटी यहीं हुआ करता था जिसका अवशेष अब भी है…। इस शहर को कभी सिल्क सिटी से नाम से जाना जाता था…। कई प्राचीन धार्मिक स्थल भी यहां है… पहले संथाली क्रांतिकारी तिलका मांझी ने यहीं अंग्रेजों से लोहा लिया था…। कई नामचीन लोगों का इस शहर से नाता रहा है…। महान कलाकार अशोक कुमार की ननिहाल यहीं थी और उनका बचपन यहीं बीता था…। बाद में उनका परिवार मध्यप्रदेश के खंडवा में बस गया था…।

मशहूर उपान्यासकार शरदचंद्र चटर्जीं ने काफी वक्त यहां गुजारे और कई कृतियों की रचना यहीं की थी…। इस शहर के दामन पर दाग भी है…। 1989 में यहां भीषण दंगा हुआ था और इसी दंगे के बाद धीरे-धीरे नाथनगर के सिल्क उद्योग की स्थिति जर्जर हो गई…। बात करें लोकसभा चुनाव की तो इसकी गिनती हाईप्रोफाइल सीटों में होती रही है और कई बार यहां दिलचस्प मुकाबले देखने को मिले हैं…।

संथाली क्रांतिकारी तिलका मांझी

स्वतंत्रता अंदोलन की लड़ाई में भागलपुर का काफी योगदान रहा है…। 1857 की क्रांति से करीब 70 साल पहले संथाली क्रांतिकारी तिलका मांझी ने समुदाय के साथ अंग्रेजों की सेना से लोहा लिया था…। लेकिन बंदूक के आगे तीर धनुष और गुलेल से लैस संथाली टिक नहीं पाये और तिलका मांझी शहीद हो गये…। पर उनकी शहादत खाली नहीं गई…। आंदोलन लंबे वक्त तक चलता रहा और आखिरकार देश को आजादी मिली…। आजादी के बाद हुए अबतक के आमचुनाव में सबसे अधिक सात बार कांग्रेस को यहां से जीत मिली…। लेकिन 1984 के बाद 2019 तक कांग्रेस को कभी सफलता नहीं मिली…। जबकि बीजेपी चार बार जनता दल तीन बार, आरजेडी को एक बार, जेडीयू और सीपीआई को एक-एक बार सफलता मिली…। 1952 में पहला आम चुनाव हुआ तो भागलपुर सीट तीन हिस्सों में बंटी हुई थी…। इस चुनाव में तीनों सीट पर कांग्रेस को ही सफलता मिली…।

आजाद को चार लाख 35 हजार से भी ज्यादा वोटों से मात मिली

भागलपुर सेंट्रल से बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला, भागलपुर सह पुर्णिया सीट से अनूपलाल मेहता और भागलपुर साऊथ से सुषणा सेन ने बाजी मारी थी…। 1952 में ही भागलपुर सह पुर्णिया सीट पर चुनाव हुआ तो यहां से जीत मिली प्रजा सोसलिस्ट पार्टी के आचार्य कृपलानी को…। 1957 में भागलपुर सीट अस्तित्व में आई इस बार भी कांग्रेस ने बनारसी प्रसाद को ही प्रत्याशी बनाया और उन्होंने लगातार दूसरी बार जीत कर पार्टी को निराश नहीं किया…। 1962 में कांग्रेस ने स्वतंत्रता सेनानी भागवत झा आजाद को टिकट दिया और उन्होंने सीपीआई के छविनाथ सिंह को मात देते हुए इस सीट को बरकार रखा…। आजाद इसके बाद 1967 और 1971 का भी चुनाव जीते लेकिन 1975 में लगी इमरजेंसी के चलते देश भर में कांग्रेस के खिलाफ माहौल खराब था…ऐसे में 1977 में हुए चुनाव में आजाद भारतीय लोकदल के प्रत्याशी रामजीवन सिंह से चुनाव हार गये…। आजाद 1980 का चुनाव जीतने में कामयाब रहे…। 1984 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर में वो एक बार फिर से लोकसभा में पहुंचने में कामयाब रहे…। 1989 के चुनाव से पहले बोफोर्स तोप खरीद मामले को लेकर राजीव गांधी सरकार की काफी किरकिरी हो चुकी…। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे…। देश भर में कांग्रेस के खिलाफ माहौल बन चुका था…। ऊपर से इसी साल भागलुपर में भीषण दंगा हो चुका था…। इसके बावजूद आजाद 1989 एक बार फिर से यहां से ताल ठोकते नजर आए…। जनता दल ने उनके खिलाफ प्रत्याशी बनाया चुनचुन यादव को…। रिजल्ट आया तो पूरा प्रदेश भौचक्का रह गया….। कभी लाखों वोट से चुनाव जितने वाले आजाद को चार लाख 35 हजार से भी ज्यादा वोटों से मात मिली…।
इसके बाद उनका चुनावी सफर समाप्त हो गया….। चुनचुन यादव इस सीट को 1991 और 1996 में बचाने में कामयाब रहे…। लेकिन इसी दौरान मंडल (OBC को आरक्षण का मामला) और कमंडल (अयोध्या में राम मंदिर का मामला) चरम पर था साध ही बीजेपी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता जा रहा था…। 1998 में जनता दल ने एक बार फिर चुनचुन यादव पर दांव आजमाया…। लेकिन बीजेपी के प्रभाष चंद्र तिवारी उनको मात देने में कामयाब रहे…। 1999 के चुनाव में प्रभाष चंद्र बीजेपी के बैनर तले एक फिर ताल ठोकते नजर आए लेकिन सीपीआई के सुबोध रे ने यहां लाल परचम लहरा दिया…। 2004 में यहां से बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया विधायक सुशील मोदी को…। उन्होंने सुबोध रे को मात देते हुए यहां बीजेपी की वापसी करा दी…।
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कई हाईप्रोफाइल नेताओं को जीत मिली

2005 में जब बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की बिहार में सरकार बनी तो मोदी डिप्टी सीएम बनाये गये…। इसके बाद उन्होंने लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया…। 2006 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ तो कामयाबी मिली बीजेपी के शाहनवाज हुसैन को…। शाहनवाज 2009 में भी इसी सीट को बचाने में कामयाब….। लेकिन 2014 के चुनाव में वो करीबी मुकाबले में करीब 13 हजार वोट से आरजेडी के शैलेश कुमार ऊर्फ भूलो मंडल से चुनाव हार गये…। तब राजनीति के जानकारों ने कहा था कि बीजेपी नेताओं की अंदरुनी लड़ाई का खामियाजा शहनवाज को भुगतना पड़ा था…। 2019 के चुनाव में एनडीए में हुए समझौते के बाद ये सीट जेडीयू के कोटे में चली गई…। पार्टी ने प्रत्याशी बनाया अजय कुमार मंडल को…। जबकि उनको चुनौती मिली थी आरजेडी के भूलो मंडल से…। अजय ने करीब पौने तीन लाख वोट से भूलो को पराजित किया और वो लोकसभा का रास्ता भूल गये…। यहां से कई हाईप्रोफाइल नेताओं को जीत मिली लेकिन इस क्षेत्र को उसको वो हक नहीं मिला जिसका वो हकदार था…।
क्रमश:
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। कई टीवी चैनलों में काम कर चुके हैं । शेखपुरा जिले के बरबीघा के माउर निवासी है।
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