हम मौत के कुआँ में वाहन चलाने के आदी है, सुधारने के लिए कठोरता जरूरी।
अरुण साथी
नए ट्रॉफिक नियम को लेकर हंगामा बरपा है। सोशल मीडिया में जोक्स और पटना की सड़क पे ऑटो का सड़क जाम। सभी का गुस्सा है कि जुर्माना दस गुणा बढ़ा दिया।
खैर, चर्चा होनी चाहिए। सबसे पहले । एक प्रसंग। अपने बिहार के सबसे छोटे से जिले शेखपुरा से। पत्थर हब होने की वजह से यहां ट्रकों की संख्या पर्याप्त से कई गुणा अधिक है। हर दिन कई ट्रक खरीद कर आते है। इसी क्षेत्र से जुड़े एक मित्र ने पूछा। कभी सोंचा है कि नए नए ट्रकों के चालक कहाँ से आ जाते है। उन्होंने बताया। ट्रॉकों के खलासी ( सहचालक) ही कुछ माह बाद नए ट्रॉकों पे चालक होते है! नाबालिग। बगैर सीखे। बगैर लाइसेंस के। परिणामस्वरूप वे सड़कों पे हत्यारे है। यह बसों, स्कार्पियो, बलोरो सब के लिए भी समान है।
खैर। बाइक की बात। खबरों से जुड़े रहने के नाते और हाल में हादसे का शिकार होने के बाद यह कह सकता हूँ कि बगैर हेलमेट बाइक चलाना मौत के कुआँ में चलना है। हमारी आदत ही नहीं है। न हेलमेट। न लाइसेंस। न नियम की जानकारी। नब्बे प्रतिशत बाइकर हेलमेट नहीं लगते। जो लगाते है उनमें आधे हेलमेट बेल्ट नहीं लगाते। परिणामतः रोज हादसे में मौत की खबरों से अखबार रंगे होते है। अभी बाइक से गिर कर महिलाओं की सर्वाधिक मौतें हो रही है। कारण। बाइक पे उल्टा बैठना। कहीं कुछ नहीं पकड़ना। और निश्चिंत होकर आराम कुर्सी जैसा बैठना। हेलमेट नहीं लगाना। फिर थोड़े से झटके में मौत के मुंह में। सीट बेल्ट भी नहीं बांधना हम अपनी शान समझते है। जो लगा ले उसके बुद्धू। नई पीढ़ी तो खैर। बाइक नहीं चलाते। मौत से खेलते है।
मतलब। हम सड़कों पे चलते है तब या तो आत्महत्या करते है। या फिर किसी की हत्या। बहुत कुछ है। जैसे चार पहिये वाहनों में एयर बैग के बिना गाड़ी विदेशों में बेचने की इजाजत नहीं। यहां है। कम पैसे के लालच में हम खरीद लेते है। हमारी सरकार ही हमे मौत के कुआँ में धकेल देती है।
एक आशंका। पुलिस बसूली करेगी। यह सच है। यह खत्म होने वाला नहीं। तब भी। सजा तो हमे मिलनी है। हम लगातार घूस देने से अच्छा नियम पालन को समझने लगेंगे।
लब्बोलुआब। हम बैगर कठोरता के नहीं सुधार सकते। नए नियम हमें मौत के कुआँ में जाने से रोकने के लिए है। हमारी जान बचाने के लिए। हाँ, कठोर है। पर हमारे लिए। हमें इसका स्वागत करना चाहिए।
(अरूण साथी के ब्लॉक चौथा खंभा से साभार)
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