GOOD NEWS: गोपाष्टमी पर गाय की होगी पूजा, कभी लगता था यहां भव्य मेला
शेखपुरा, बरबीघा
गोपाष्टमी पर आज गो की पूजा करने की परंपरा वर्षो पुरानी है। इस दिन को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। शुक्रवार को गोपाष्टमी की तैयारी खासतौर पर गौशाला में की गई है। गौशाला में आयोजकों के द्वारा गौ पूजा का प्रबंध भी किया गया है। वहीं घरों में गाय के रखने वालों के द्वारा भी गोपाष्टमी पर गौ पूजा की जाएगी । गौ पूजा को लेकर इस आध्यात्मिक अनुष्ठान को ही गोपाष्टमी कहा जाता है।
गोपाष्टमी क्यों मनाया जाता है
गोवर्धन पूजा के बाद 7वें दिन को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि जब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था तो उसके 7 दिन बाद भगवान इंद्र ने कृष्ण से हार मानी और क्षमा याचना की। इसी दिन को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण के घर में सबसे अधिक गोपालन होता था। इसी मान्यता के अनुसार गोपाष्टमी का पूजा किया जाता है।
गाय को गुड़ और रोटी खिलाने की परंपरा
गोपाष्टमी के दिन गाय को गुड़-रोटी खिलाने की परंपरा है। इस दिन गाय का स्नान कराने के बाद उसकी पूजा पाठ की जाती है। जिनके घरों में गाय नहीं है वह गौशाला में जाकर गाय की सेवा करते हैं। उन्हें गुड़ और रोटी, हरा चारा इत्यादि खाने के लिए देते हैं। मान्यता के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास है और उसकी पूजा और सेवा से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस मान्यता के अनुसार गोपाष्टमी के दिन भी गाय की पूजा की जाती है।
गोशाला में पहले होता था भव्य आयोजन
गोशाला में पहले गोपाष्टमी के दिन भव्य आयोजन होता था । गाय की पूजा करने को लेकर रंगीन कपड़े पहनाए जाते थे और उसी शहर भर में घुमाया जाता था। शेखपुरा और बरबीघा के गोशाला में भी इस तरह के आयोजन होते थे। बरबीघा गोशाला से जुड़े रहे समाजवादी नेता शिवकुमार कहते हैं कि गाय को नहलाने के बाद नया रंगीन वस्त्र पहनाए जाता था और नगर भर में उसका भ्रमण होता था। जगह-जगह लोग गायों की पूजा करते थे। अब यह बीते दिनों की बात हो गई। गोशाला में वर्तमान में कुछ गायों को रखा गया है और गोशाला को पुनर्जीवित किया जा रहा है। गोशाला को पुनर्जीवित करने की इस अभियान में युवा लगे हुए हैं। परंतु गोपाष्टमी की परंपरा लगभग खत्म हो गई है।
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