किसान तो बहाना है, मोदी को झुकाना है, मरने से पहले भूत होने का जमाना है
अरुण साथी
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कृषि कानून बिल को अगले आदेश तक के लिए रोक लगा देने के बाद 4 सदस्य कमेटी बनाने और मध्यस्थता के मामले में किसानों का अड़ियल रुख अपना लिया जाना इस बात के प्रमाणित करने को लेकर काफी है कि इस पूरे आंदोलन में किसानों के हित साधना कम और मोदी को झुकाना ज्यादा नजर आ रहा। सुप्रीम कोर्ट में भी किसानों के अधिवक्ता के द्वारा प्रधानमंत्री पर टिप्पणी किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा प्रधानमंत्री का पार्टी इस मामले में नहीं होने की बात कहना इसी की ओर इशारा करता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले आंदोलन समर्थक सुप्रीम कोर्ट का गुणगान कर रहे थे। वही आदेश मन मुताबिक नहीं होने पर आलोचना शुरु कर दिया। एक दिन पहले गुणगान करने वाले गाली देने लगे।
मरने से पहले भूत
लोकतंत्र में सत्ता को घेरना विपक्ष के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे शुभ भी माना जाता है। निश्चित रूप से आंदोलन से ही सत्ता निरंकुश नहीं होती। परंतु आंदोलनकारियों के रुख और रवैये से यह स्पष्ट दिखता है कि सीएए में विरोध में असफल लॉबी अब किसान के कंधे पर हल रखकर नरेंद्र मोदी को घेर रहे हैं। जैसे सीएए आंदोलन में मरने से पहले भूत होने का भय दिखाकर शाहीन बाग का हठीला आंदोलन किया गया था वैसे ही किसान बिल का मामला भी है। मरने से पहले भूत होने का भय ज्यादा दिखाया गया है।
गोदी मीडिया और मन लायक रिपोर्टिंग
सोशल मीडिया के फैशन के युग में गोदी मीडिया का एक फैशन भी चला है। इसमें अपने हिसाब से रिपोर्टिंग नहीं होने पर सत्ता का समर्थन करने का आरोप मीडिया पर लगाकर गोदी मीडिया कहा जाता है परंतु पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर नरेंद्र मोदी का विरोध करने वाले मीडिया ग्रुप के लिए नामकरण क्या होगा।
50 दिन से चलने वाले आंदोलन में जिस तरह से नरेंद्र मोदी से पूर्वाग्रही लोग एकजुट होकर मुद्दे को उछाल रहे। आंदोलन को हवा दे रहे। उससे इस बात की आशंका शुरू से ही जाहिर की जा रही थी। सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थों के बीच किसान संगठनों के अड़ियल रुख से यह साफ हो गया।
किसान का बाजारीकरण
किसान बिल के बारे में स्पष्ट रूप से पहले भी कहता रहा हूं कि इसमें किसानों का अहित कहीं नहीं होने वाला है। राजनीतिक एजेंडे के तहत इस मुद्दे को उछाला जा रहा है। किसान का बाजारीकरण होना किसानों के सुनहरे भविष्य के दिशा में एक कदम है। किसान बिल शुद्ध रूप से किसानों का बाजारीकरण ही है।
इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि किसान बिल में मंडी को खत्म करने। कॉन्ट्रैक्ट पर खेती करने। भंडारण की समस्या को लेकर विपक्षी पार्टियां तो आवाज भी उठाती रही है। कुछ क्रांतिकारी रिपोर्टर के कई रिपोर्ट में भी मंडियों को खत्म करने का मुद्दा उछाला गया है।
कांग्रेस के मेनिफेस्टो में भी इस तरह के जिक्र का बात अब सामने आ गया है । राहुल गांधी के वक्तव्य भी वीडियो के रूप में वायरल है। कुल मिलाकर किसान बिल के माध्यम से नरेंद्र मोदी को झुकाने को लेकर वही पूर्वाग्रही लोग मजबूती से लगे हुए हैं। साफ है कि इससे किसानों के हित का कोई मामला जुड़ा हुआ नहीं है।
किसानों के बिल को लेकर विरोध का सबसे बड़ा मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीद का है। हालांकि किसान बिल में इसे खत्म करने का कहीं जिक्र नहीं है फिर भी इसे कानूनी जामा पहनाने की मांग उचित है। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए। मंडियों को खत्म करना एक बेहतर पहल है।
नीतीश कुमार ने मंडियों को खत्म किया
बिहार में नीतीश सरकार आते ही सबसे पहला काम मंडियों को खत्म किया जाना ही था। हमारा उत्पादन है हम जहां चाहे बेचें। जहां अच्छा दाम मिलेगा वहां बेचेंगे । बिना वजह टैक्स क्यों दिया जाए।
कॉन्ट्रैक्ट आधारित खेती को लेकर बड़े-बड़े व्यापारी घराने के द्वारा किसानों को तबाह कर देने का भ्रम फैलाया जा रहा है । मेरा मानना है कि कांटेक्ट आधारित खेती किसानों के हित में ही होगा। हां इसमें थोड़े से सुधार किसानों के हित में अगर करने की जरूरत है तो बड़े-बड़े जानकार इस पर मिल बैठकर सुझाव दे सकते थे। हालांकि जहां तक मेरी समझ है इसमें किसानों के हित का ख्याल रखा गया है।
(प्रस्तुत आलेख वरिष्ठ पत्रकार अरुण साथी के ब्लॉग चौथा खंभा से साभार)
chouthaakhambha.blogspot.com
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