सरकारी दर पर धान की खरीद में शिथिलता बरतने पर जिलाधिकारी ने लगाई फटकार
शेखपुरा
शेखपुरा जिला अधिकारी इनायत खान ने किसानों से उसकी धान की खरीद सरकारी दर पर किए जाने के मामले में सहकारिता विभाग सहित अन्य पदाधिकारियों की शिथिलता पर जमकर फटकार लगाई। इसको लेकर समीक्षा बैठक का आयोजन मंगलवार को किया गया। समीक्षा बैठक में जिलाधिकारी ने किसानों के पंजीयन के आंकड़े पर नाराजगी जाहिर की और अधिकारियों को इसमें सुधार लाने की बात कही। उन्होंने स्पष्ट कहा कि जिले में किसान अनुदान के लिए 45000 किसानों ने अपना निबंधन ऑनलाइन करवाया है जबकि धान की बिक्री करने वाले किसानों के निबंधन की संख्या मात्र 980 है। आंकड़ों में इतना अंतर पर जिलाधिकारी ने नाराजगी जाहिर करते हुए वसुधा केंद्र, ऑनलाइन सेंटर सहित सहकारिता प्रखंड पदाधिकारी के द्वारा अधिक से अधिक किसानों के निबंधन किए जाने का निर्देश दिया।
जिसकी अपनी नहीं जमीन वैसे किसान की धान होगी खरीद
जिलाधिकारी ने स्पष्ट रूप से अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि धान की खरीद में अनियमितता पर कड़ी कार्रवाई होगी। जिस किसान के पास अपनी जमीन नहीं है और बटाई पर खेती करते हैं वैसे किसानों का परिचय पत्र लेकर भूमि पर सत्यापन करते हुए उनकी भी धान खरीद की जानी है परंतु इस में अनियमितता बर्दाश्त नहीं होगी।
ग्रेड ए धान 1888 खरीद
बिहार सरकार के द्वारा सरकारी दर पर धान खरीद में राहत किसानों को दिया गया है और धान की खरीद 1888 रुपए पर किए जाने का मुल्य निर्धारित किया। जबकि साधारण 1868 में सहकारिता विभाग के द्वारा सरकारी दर पर खरीद किया जाएगा परंतु बैठक में ही अधिकारियों ने कहा कि व्यापारी किसानों से धान की खरीद ₹1000 से 1200 प्रति क्विंटल कर रहे। किसानों को काफी नुकसान हो रहा है। जिलाधिकारी ने स्पष्ट कहा कि 23 नवंबर से धान की खरीद सुनिश्चित होनी थी परंतु इसमें लापरवाही हो रही है। उन्होंने किसानों से धान की खरीद शुरू करने का निर्देश अधिकारियों को दिया।
54 पैक्स अध्यक्ष सभी करते हैं गोलमाल
जिला में 54 पैक्स अध्यक्ष है परंतु धान की खरीद में सभी गोलमाल करते हैं। किसानों से धान तो खरीद लिया जाता है परंतु एक -दो साल तक उसको पैसा नहीं दिया जाता है। इससे किसानों को धान बेचना नहीं चाहते हैं। पैसा भी कम दिया जाता है। व्यापार मंडल का भी यही हाल है। इतना ही नहीं किसानों से धान खरीद के समय पैक्स अध्यक्ष के द्वारा बैंक के निकासी पत्र पर दस्तखत करा लिया जाता है। सहकारिता बैंक से पैसे की निकासी होती है। पदाधिकारी की मिलीभगत से बिना किसान के गए खाते से पैसा निकाल लिया जाता है। जिससे किसानों को उचित मूल्य का लाभ नहीं मिल पाता है।
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