पंचायत चुनाव- पैसा, दारू, मुर्गा, जाति, धर्म, टोला, धमकी, घुड़की
पंचायत चुनाव- पैसा, दारू, मुर्गा, जाति, धर्म, टोला, धमकी, घुड़की
विचार विमर्श/डॉ भावेश पांडेय
प्रदेश में पंचायत चुनाव का माहौल गर्म है। मुखिया, सरपंच, वार्ड और समिति सदस्य के प्रत्याशी चुनाव की तैयारी में लगे हैं। गाँवों में चहल पहल है।
पंचायती राज ने गाँवों में विकास लाया है। सरकारी पैसा सीधे गाँव तक आ रहा है। साथ ही सरकारी रोग भी लग रहा है। सरकारी पैसों की बंदरबाँट चल रही है। इसकी छीनाझपटी मची है। गाँव भी शहरों जैसे सड़ने लगे हैं।
मुखियों की हनक और कमाई सबको लुभाती है। इसलिए गाँव के गाँव दोफाड़ हैं। जीत के लिए गदर मची रहती है। पैसा, दारू, मुर्गा। जाति, धर्म, टोला। धमकी, घुड़की। पैरवी, खुशामद, ड्रामा। केस मुकदमा। गाली गलौज।
भारत पर न जाने कितनी आफ़तें आईं। पर गाँवों ने भारत को मरने नहीं दिया। पूजा पाठ, रीति रिवाज, पर्व त्योहार, खेती बाड़ी, और हस्तशिल्प गाँव की ताकत रहे हैं। देश मे सत्ताएँ बदलती रही किन्तु गाँवों का ग्रामस्वराज बचा रहा। यहाँ मिल्लत बनी रही। आत्म निर्भर बने रहे गाँव।
नया पंचायती राज मजबूत हाज़मे का मुखिया बनाता है।
वह सबकुछ पचा सकता है। वह रेवड़ियाँ बाँटता है और चुग्गा फेककर फंसाता है। और फिर निगल जाता है।
नया पंचायती राज ऐसे ही चला तो गाँव को खा जायेगा एक दिन।
आलेख मुंगेर विश्वविद्यालय के निरीक्षक एवं प्रोफेसर डॉ भावेश पांडेय के फेसबुक से साभार प्रकाशित
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