बरबीघा विधानसभा: जब तक नहीं मिलता टिकट, तब तक होता रहेगा खटपट
चुनाव डेस्क:बरबीघा
बरबीघा विधानसभा बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ श्री कृष्ण सिंह की जन्म भूमि रही है। स्वतंत्रता सेनानी शिक्षाविद लाला बाबू की जन्मभूमि, कर्मभूमि रही है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की भी कर्म भूमि रही है। यहां भगवतीचरण जैसे मनीषी भी हुए परंतु बरबीघा विधानसभा में राजनीतिक रूप से आज कोई भी एक ऐसा चेहरा नहीं जिसे अपने टिकट मिलने का भरोसा हो। हालांकि एनडीए से पिछले विधानसभा में चुनाव लडने वाले समाजवादी नेता शिवकुमार अपने सब लोग पार्टी से चुनाव लड़ने के दावे पहले ही कर चुके हैं।
दलबदल का खेल जनता हो गई फेल
बरबीघा विधानसभा में दलबदल का खेल पुराना रहा है। वर्तमान विधायक कांग्रेस से पाला बदलकर जदयू में चले गए। इससे पहले 2010 में वे लोजपा से चुनाव लड़े और जदयू के ही गजानंद शाही से हार गए। 2015 में कांग्रेस के उम्मीदवार बने अब 2020 में जदयू का दामन थाम लिया है। उनके समर्थकों का दावा टिकट पक्का होने को लेकर है । उनके पीठ पर ललन सिंह और बरबीघा में राजनीतिक पकड़ रखने वाले अशोक चौधरी का हाथ है। ललन सिंह के पार्टी में पकड़ से किसी को इनकार नहीं है।
परंतु एनडीए में ही कई प्रबल दावेदार हैं। जदयू में अंजनी कुमार की दावेदारी प्रबल मानी जाती रही। वह आरसीपी खेमे के माने जाते हैं। हालांकि कई बैठकों में नीतीश कुमार के साथ आरसीपी के नहीं होने से कई सवाल उठने लगे।
लोजपा की दावेदारी को सांसद चंदन कुमार और सूरज भान सिंह के बिटो से प्रबल माना जा रहा है। उनके समर्थक भी टिकट मिलने के दावे कर रहे हैं। सांसद चंदन कुमार कई गांव में लाखों के योजनाओं का शिलान्यास कर चुनावी शंखनाद भी कर दिया। सभी जगह मधुकर कुमार को प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत भी कर दिए। माना जा रहा है कि इस सीट पर लोजपा का भी बिटो लग जाएगा। बीजेपी भी इस सीट पर अपनी दावेदारी कर रही है। बीजेपी से वरुण सिंह, पूनम शर्मा, संजीत प्रभाकर अपनी अपनी दावेदारी दे रहे हैं। जिला अध्यक्ष सुधीर कुमार कहते हैं कि बरबीघा सीट पर बीजेपी की दावेदारी मजबूत है। जिले में एक सीट भाजपा के खेमे में जाना तय है।
महागठबंधन में भी चल रहा है खेल
महागठबंधन में भी खेल खूब हो रहा है। कांग्रेस छोड़कर जदयू में शामिल हो गए विधायक तो इस सीट पर वैकेंसी भी बड़ी हो गई। सीटिंग सीट से जदयू विधायक को हटाकर कांग्रेस को टिकट दिया गया था। गजानंद शाही उस वक्त एमएलए थे। 5 सालों तक क्षेत्र को उन्होंने नहीं छोड़ा। लोगों के यहां आना जाना और संवाद जारी रखा। उधर जब कांग्रेस विधायक ने पाला बदला तो गजानंद शाही ने भी पुराने घर में वापसी कर ली। कांग्रेस में शामिल हो गए। उनके समर्थक उनके टिकट को पक्का मान रहे हैं।
उधर तेउस गांव निवासी मुकेश सिंह कांग्रेस में अपनी पकड़ मजबूत बता रहे हैं। जिलाध्यक्ष के साथ कई कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति, राहुल गांधी के सदस्यता अभियान में उनकी भागीदारी से उनके समर्थकों के हौसले बुलंद हैं। उधर त्रिशूलधारी सिंह के द्वारा कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा की जा चुकी है। हालांकि उनके पीठ पर रहने वाले अनंत सिंह के राजद से नजदीकी की चर्चा भी हो रही है। उधर राजद के प्रदेश महासचिव और बिहार केसरी के प्रपौत्र अनिल शंकर सिन्हा के समर्थक उनके टिकट को पक्का बता रहे हैं। अनिल शंकर सिन्हा पार्टी में टिकट के भरोसे पर ही शामिल हुए थे वैसे में उनकी भी दावेदारी चल रही है। बताया जाता है कि तेजस्वी यादव से वह सीधा संवाद कर रहे हैं। अब चाहे जो भी हो राजनीति के पुराने अनुभव तो यह कहते हैं कि जब तक किसी के हाथ में टिकट नहीं आ जाता तब तक वे अपने आप को प्रत्याशी नहीं मान सकते एक सेकंड में टिकट का पाला बदल जाता है हालांकि सोशल मीडिया पर सभी नेता अपने-अपने टिकट को पक्का बता रहे है।
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