पाक रमजान का महीना शुरू, जानिए इस पाक महीने में क्या है खास
पाक रमजान का महीना शुरू, जानिए इस पाक महीने में क्या है खास
अतिथि कॉलम/ शब्बीर हुसैन बंटी
मुस्लिम समुदाय में बहुत पवित्र माना जाने वाला रमजान का महीना शुरू हो गया है आज यानी 14 अप्रैल से रोजे (फास्टिंएग) रखे जाएंगे। रमजान के महीने की शुरुआत चांद देख कर होती है। चांद देखने के अगले दिन से रोजे रखे जाते हैं. इस महीने को बरकतों का महीना माना जाता है। मुस्लिम समाज में इसकी बहुत अहमियत है। रमजान के महीने में 29 या 30 दिन के रोजे रखे जाते हैं और इबादत की जाती है।
इस दौरान लोग पांचों वक्त की नमाज, तराबी (कुरान की आयतो को नमाज के माध्यम से सुनना) अदा करते हैं और कुरआन मजीद की तिलावत करते हैं। कहा जाता है कि इस महीने की जाने वाली इबादत का सवाब (पुण्य) अन्य महीनों की तुलना में सत्तर गुना ज्यादा मिलता है। इस्लाम धर्म के पैगंबर मुहम्मद साहब (अल्लाह के दूत) के मुताबिक, रमज़ान का महीना शुरू होते ही जहन्नुम के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं।
मुस्लिम समुदाय के लोग इस पूरे महीना रोजा रखते है और सूरज निकलने से लेकर डूबने तक कुछ भी नही खाते पीते हैं। रमजान के महीने में मुस्लिम लोग खुद को खुदा की इबादत में समर्पित कर देते हैं।
रमजान में रोजे की शुरूआत करने से पहले सूर्योदय से पहले (फजीर की आजान के पहले) कुछ खा लिया जाता है जिसे ‘’सहरी’’ कहते है और सूरज ढलने के बाद (मगरीब के आजान के साथ) रोजा खोला जाता है जिसे ‘’इफ्तारी’’ कहा जाता है। इस बीच पूरे दिन न तो अन्नत खाया जाता है और न ही पानी पिया जाता है। हालांकि, इसके साथ-साथ पूरे जिस्म और नब्जों को कंट्रोल करना भी जरूरी होता है। इस दौरान न किसी को जुबान से तकलीफ देनी है और न ही हाथों से किसी का नुकसान करना है और न आंखों से किसी गलत काम को देखना है आदि इसे ‘’तकबा’’ कहते है।
रोजा इस्लाम के पांच मूलभूत सिद्धांतों (फाइब पिलर) में से एक है, जो सभी मुसलमानों पर फर्ज (जरूरी) है. पहला तौहीद यानी कलमा (अल्लाह को एक मानना उसके नबी के बताए रास्तेक पर चलना), दुसरा नमाज, तराबी, तीसरा जकात (दान देना), चौथा रोजा (उपवास) और पांचवा हज करना।
इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा कब शुरू हुई?
फैजाबाद जामा मस्जिद के ईमाम हाफीज तौसीफ साहब के मुताबिक इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी में शुरू हुई है। कुरान की दूसरी आयत पारा अल बकरा में साफ तौर पर कहा गया है कि रोजा तुम पर उसी तरह से फर्ज किया जाता है जैसे तुमसे पहले की उम्मत पर फर्ज था। मुहम्मद साहब मक्के से हिजरत (प्रवासन) कर मदीना पहुंचने के एक साल के बाद मुसलमानों को रोजा रखने का हुक्म आया इस तरह से दूसरी हिजरी में रोजा रखने की परंपरा इस्लाम में शुरू हुई। हालांकि, दुनिया के तमाम धर्मों में रोजा रखने की अपना अलग-अलग परंपरा है।
रोज़ा रखना किन लोगो को माफ़ है?
कोई बीमार हैं, जो यात्रा पर हैं, कोई औरतें प्रेग्नेंट हैं, छोटे बच्चे हैं, सिर्फ उन्हें ही रोज़ा नहीं रखने से छूट दी गई है। रोज़ा रखने वाले खाने पीने के अलावा सिगरेट, बीड़ी का धुआं भी नहीं ले सकते। रोजा रखने वाले मुंह का थूक भी नहीं निगल सकते यानी अगर खाने की कोई चीज देखकर मुंह में पानी आया तो वो भी निषेध है।
रमजान में चैरिटी करना जरूरी
रमजान में जकात (दान) का खास महत्व है. अगर किसी के पास सालभर उसकी जरूरत से अलग साढ़े 52 तोला चांदी या उसके बराबर की नकदी या कीमती सामान है तो उसका ढाई फीसदी जकात यानी दान के रूप में गरीब या जरूरतमंद को दिया जाना चाहिए। ईद पर फितरा (एक तरह का दान) हर मुसलमान को करना चाहिए। इसमें 2 किलो 45 ग्राम गेहूं गरीबों को दें या फिर उसकी कीमत तक की रकम गरीबों में दान की जानी चाहिए।
रमज़ान को सही मायने में क्या कहते हैं, रमज़ान या रमदान?
पिछले कुछ सालों से लोग सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव हो गए हैं। जैसे ही रमज़ान शुरू होता है तो लोग एक-दूसरे को मुबारकबाद देने लगते हैं। कोई लिखता है रमदान मुबारक (Ramdhan Mubarak) तो कोई लिखता है रमज़ान मुबारक (Ramzan Mubarak)। अब लोगों में इसी बात को लेकर बहस छिड़ गई है कि ये रमज़ान है या रमादान?
रमजान की सच्चाई…..
असल में रमादान अरबी लफ्ज़ है, जबकि रमज़ान उर्दू का लफ्ज़। रमदान और रमज़ान के फर्क के पीछे यह कहानी बताई जाती है कि अरबी भाषा में ‘ज़्वाद’ अक्षर का स्वर अंग्रेज़ी के ‘ज़ेड’ के बदले ‘डीएच’ की संयुक्त ध्वनि होता है। इसीलिए इसे अरबी में रमादान कहा जाता हैं। लेकिन इस तर्क से सभी मुस्लिम स्कॉलर इत्तेफाक नहीं रखते हैं और कहते हैं जब रमज़ान, रमदान है तो फिर रोज़े को ‘रोदे’ और ज़मीन को दमीन ही कहना चाहिए, मगर अगर ऐसा बोला गया तो कोई भी उसे तोतला समझेगा। लेकिन इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि लोगों की भावनाएं आहत हो जाती हैं। ये तो मात्र उच्चारण का ही हेरफेर है।
रमज़ान की तारीख हर साल क्यों बदल जाती है?
इसका कारण है इस्लामिक कैलेंडर, जो कि चांद के अनुसार होता है। इस्लामिक कैलेंडर में साल में 354 दिन होते हैं, इसमें अंग्रेजी कैलेंडर की तरह साल 365 दिन का नहीं होता। इसलिए हर साल 13 दिन कम हो जाते हैं. और इस तरह हर त्योहार मुस्लिमों का 11 दिन पहले आ जाता है। इसीलिए रोज़े जो कुछ साल पहले सर्दियों में आते थे वो अब गर्मियों में आने लगे हैं।
भारत में इस बार कितने घंटे का होगा रोजा?
भारत में पहला रोजा 14 घंटे 8 मिनट की अवधि का होगा। ये इस पाक महीने का सबसे छोटा रोजा बताया जा रहा है। वहीं आखिरी रोजा 14 घंटे 52 मिनट का होगा और ये सबसे बडा रोजा माना जा रहा है।
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