• Thursday, 28 March 2024
कैसे थे कर्पूरी ठाकुर: सवर्णों को दिया आरक्षण का लाभ, ईट-पत्थर फेंकने पर भी रहे चुप

कैसे थे कर्पूरी ठाकुर: सवर्णों को दिया आरक्षण का लाभ, ईट-पत्थर फेंकने पर भी रहे चुप

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कैसे थे कर्पूरी ठाकुर: सवर्णों को दिया आरक्षण का लाभ, ईट-पत्थर फेंकने पर भी रहे चुप

शिवकुमार

रहीमन अब वो बृक्षन कहा, जिनके छांव गम्भीर – ” यादो मे कर्पूरी ठाकुर”
1974के आन्दोलन में पहली बार कर्पूरी ठाकुर जी को देखने सुनने का मौका लखीसराय में समाजवादी नेता कपिलदेव बाबू के साथ एक सभा मे मिला था। जब उन्हें यह जानकारी मिली कि मै कपिलदेव बाबू के ममेरे भाई का लङका हूं तो वे स्नेह से भर बात करने लगे और मेरे आग्रह पर बरबीघा मे अपना कार्यक्रम भी दिया। बाद मे मेरी मीसा मे गिरफ्तारी हो गई और मै मुंगेर जेल में रखा गया।

वहां एक बार हमारे आन्दोलन कारी साथियों का जेल प्रशासन के साथ झमेला होने पर पगली घंटी बजी और आन्दोलनकारी काफी घायल हुए। घटना के चार दिन बाद कर्पूरी जी जेल पर मिलने आये। सामने देखते ही पूंछ बैठे आपको भी चोट लगी है। मैने कहा कि मुझे तो नहीं लगी है पर हमारे बरबीघा के दस बारह साथी काफी घायल है। इन्हें अस्पताल में अच्छे इलाज की जरूरत है। जेल प्रशासन जिला अस्पताल भेज नहीं रहा है। जेलर को उन्होंने उनलोगो से मिलाने कहा और जब वे उनलोगो की हालत देखे तो गुस्से में बिफर पङे। जेलर को इतनी डांट पिलाई की उनकी सिटी पिटी गुम हो गई। फिर वहीं से डीएम से बाते कर घायलो को अस्पताल भिजबाया। बाद के दिनो मे तो कर्पूरी जी जब कभी हमारे रास्ते से जाते तो अवश्य ही रूककर खाना खाते और मिलते । सभा मिटिंग मे साथ ले जाते ।

77 में कर्पूरी जी मुख्यमंत्री बने। मै पटना गुलजारबाग मे पोलिटेक्निक मे छात्र था। बिहार झारखंड मिलाकर उन दिनों 12 पोलिटेक्निक था। मांगो को लेकर छात्र संघर्ष समिति बनी और मै उसका संयोजक बनाया गया। धरना, अनशन, प्रदर्शन का दौर चला पर टेक्निकल वोर्ड के डायरेक्टर एच एन पाण्डेय बात करने को तैयार ही नहीं । अन्त मे हमलोगो ने टेक्निकल वोर्ड के अॉफिस का कामकाज ठप्प करने का निर्णय लिया। उनदिनो टेक्निकल वोर्ड का अॉफिस बोरिग कैनाल रोड के एक किराये के मकान मे ही चलता था। हम बिभिन्न पोलिटेक्निक के छात्र वहां अॉफिस खुलने के पहले ही आकर गेट और दरबाजे पर बैठ गये। डायरेक्टर , सेक्रेटरी और अन्य सभी कर्मी बाहर ही खङे रहे। पुलिस बुलाई गयी और हमलोग 63छात्र गिरफ्तार कर कोतवाली थाना लाये गये। विधानसभा का सत्र चल रहा था श्री समशेर बहादुर जो खड़गपुर से विधायक थे और हमारे साथ ही मुंगेर जेल मे मीसा मे रहे थे हमारी गिरफ्तारी का मामला उठा दिया।

मुख्यमंत्री कर्पूरी जी ने हमसभी छात्रो को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया और कहा कि आज ही शाम छात्र प्रतिनिधियों से वार्ता होगी। बाजीब मांगे मान ली जायेगी। हमसब रिहा कर दिये गये। शाम मे राजकीय अतिथिशाला मे बैठक शुरू हुई। डायरेक्टर किसी भी मांग पर हामी भर ही नहीं रहे थे। यह देख कर्पूरी जी खिज गये और डायरेक्टर श्री पाण्डेय को डांट पिलाई। सात मे पांच मांगो पर सहमति बनबा दिया।
एक बार वे मुख्यमंत्री रहते कपिलदेव बाबू के 5सरपेंटाईन रोड जो अब दरोगा प्रसाद रोड हो गया है खाने पर दोपहर मे आये। मै भी वही था। चलते बक्त मैने कहा कि एक जरूरी काम है मेरा पर आपसे भेट हो नहीं पाती है। वे बोले पांच बजे सबेरे आप मेरे निवास पर आ जाईये। मैने कहां कि पांच बजे कौन मुख्यमंत्री आवास मे धुसने देगा। वे बोले आप आईये। दिसम्बर का महीना था। पांच बजे घोर अन्धेरा और ठंढक भी। रात मे कपिलदेव बाबू के निवास पर ही ठहरे और ठीक पांच बजे वेलीरोड स्थित मुख्यमंत्री आवास के गेट पर जा धमका। नाम बताया तो पहले से ही लिखा हुआ था। अन्दर गया तो देखता हूं कि नीचे हॉल मे ढेर सारे गरीब और फटेहाल लोग पुआल के उपर बिछी दरी पर सोये है।

आवास के ऊपरी मंजिल के पीछले हिस्से मे एक छोटे कमरे मे रजाई मे घुङमुङाये कर्पूरी जी धोघर काट रहे थे और सामने कुर्सी पर चार लोग बैठे थे। थोङी देर बाद वे जगे और सबो के लिए चाय मगाई। कोई ऊब या कोई तनाव नहीं। बगल मे पङी बन्डी से हरे स्याही की कलम निकाल कर आवेदन को चिन्हित कर क लिखा और कार्यवाही करे लिख कर हस्ताक्षर बना दिया। बोले अॉफिस खुलने पर मुहर लगबा लिजीयेगा। ऐसा भी सर्वसुलभ मुख्यमंत्री कोई हो सकता है क्या? आज इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

बरबीघा मे स्थानीय तत्कालीन राज्यमंत्री के पुत्र ने हमारे घर पर गोली चला दिया था। वे एक प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी और देश के नामी राजनेता के परिवार से थे। कर्पूरी जी मुंगेर योगआश्रम मे भर्ती थे। उन्हें मुंगेर के तत्कालीन विधायक श्री रामदेव सिंह यादव ने घटना की जानकारी दी थी। कर्पूरी जी बेचैन हो गये। रामदेव यादव जी तुरंत मुझे खोजकर लाने को कहा। मै मुंगेर ही था। जब रामदेव जी के साथ उनके पास गये तो तो रात के साढ आठ बज चुके थे। पुरी बात सुने और तुरन्त ही मुंगेर एस पी श्री गौतम को बुलाकर कार्रवाई करने को कहा।दुसरे दिन मेरी अनुपस्थिति में मुंगेर टाउनहॉल मे आमसभा कर इस घटना की तीखी आलोचना की। विधान सभा मे भी मामले को उठाया। उन वरसो मे मै मुंगेर जिला जनता पार्टी का महासचिव था और आदरणीय कर्पूरी जी लोकदल के नेता थे। अनगिनत ऐसे संस्मरण है जो बादलो की तरह उमङ आ रहे। एक बार पटना मे वे श्री लक्ष्मी साहू जो उनके पी ए थे से बुलबाया और कहां कि तनेजा जी के यहां आज भोजन रखाईये। बढिया भोजन हो। उनसे संघर्ष वाहिनी के युवको को छ सात साईकिल भी दिलाना है। मैने तनेजा को कहा।

भोजन का इंतजाम हुआ। एक बजे की जगह वे चार बजे पहूचे । तनेजा ने थोङा चेहरा बनाया तो वे लगातार कहने लगे बङी भुख लगी हुई है। तुरन्त खिलाईये। खाना जमकर खाये और गठबन्धन मे साईकिल भी लिए।
मृत्यु के कुछ महीने पहले ही कर्पूरी जी मुंगेर आमसभा मे आये थे। जानकारी हुई तो उन्हें सुनने चला गया। मंच से काफी दूरी पर मुंगफली खाते कुछ मित्रों के साथ सभा सुन रहा था। कर्पूरी जी की नजर पङ गई । उन्होंने मुझे बुलाने जमालपुर विधायक रहे उपेन्द्र बर्मा जी को कहा। मै हिचकते हुए मंच पर गया तो वह बैठने बोले पर जब मै यह कहा कि यदि मंच पर बैठेगे तो दल से बाहर कर दिये जायेगे। वह मान गये और बोले सभा के बाद सर्किट हाउस साथ चलियेगा।

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कुछ जरूरी बाते करनी है। सभा समाप्त हुई तो रूक कर मुझे कार मे ले गये। सबो से अलग हटकर कमरे मे लेजाकर कहा कि कपिलदेव भाई को समझाईये और हमसे बात कराईये। वे और हम मिल जायेगे तो कॉग्रेस राज को फिर खा जायेगे। हम अकेले पङ गये है। मैने कहा कि कोशिश करते है। आपका संवाद वहां तक जरूर ही पहूंच जायेगा। फिर हमने बाते भी कराई और बिहार बन्द मे कपिलदेव बाबू, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष स्वर्गीय त्रिपुरारी बाबू और अन्य लोग साथ आये। कपिलदेव बाबू के घर पर कर्पूरी जी का भोजन हुआ और आगे की रणनीति बनी पर नियति को कुछ और ही वदा था दुसरी बैठक होने की तीथि के एक दिन पहले ही अक्समात वे अन्तिम यात्रा पर चले गये।

 

आज मोदी जी की सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया है पर इसकी नींव कर्पूरी जी ने ही रखा था तीन प्रतिशत आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण को और तीन प्रतिशत सभी वर्ग की महिलाओं को। फिर भी उन्हें सवर्ण के एक वर्ग की काफी गाली खानी पङी थी। 1980 के लोकसभा चुनाव मे बरबीघा की सभा मे कॉग्रेस के उपद्रवियों ने उनपर ईट पत्थर फेका था। उनकी गाङी के शीशे तोङ दिये थे। आदमी जब नहीं होता तो पता चलता है कि वह क्या था। कर्पूरी जी अद्भुत थे, विलक्षण थे।

 

लेखक समाजवादी नेता हैं। आलेख उनके फेसबुक से साभार

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