• Saturday, 11 May 2024
दृष्टि: बिहार चुनाव: भाजपा समर्थक जदयू से अधिक मोहब्बत लोजपा से दिखा रहे हैं : कंफ्यूजन में बिहार

दृष्टि: बिहार चुनाव: भाजपा समर्थक जदयू से अधिक मोहब्बत लोजपा से दिखा रहे हैं : कंफ्यूजन में बिहार

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(सुधांशु शेखर)

कई वर्षों बाद बिहार विधानसभा चुनाव में कई धूरियाँ आपस मे जोर-आजमाइश कर रही हैं। बहुदलीय और बहुध्रुवीय चुनाव ने कई धुरंधरों को उड़ने के पर उपलब्ध करा दिए और इससे जनता के समक्ष विकल्पों की भरमार आ गई और ‘नोटा’ कमजोर पड़ गया। उपजी स्थिति ने विश्लेषकों को भी कंफ्यूज कर दिया है और परिणाम को लेकर कुछ भी स्पष्ट आंकलन मुश्किल हो गया है। सबसे बड़ा कंफ्यूजन तो एनडीए के अजूबे गठबंधन की वजह से पैदा हुआ है जिसमें दोनों प्रमुख दल अपने ध्यान चुनाव जीतने से अधिक एक-दूसरे को रोकने पर लगाए हुए हैं।

भाजपा समर्थक जदयू से अधिक मोहब्बत लोजपा से दिखा रहे हैं और प्रतिक्रियास्वरूप जदयू के कोर वोटर्स भाजपा का सहयोग नहीं कर रहे। अस्पष्ट रूप से समझा जाए कि एनडीए जमीनी स्तर पर न के बराबर है। इसका लाभ महागठबंधन को मिलना स्वाभाविक है। पप्पू यादव और ओबैसी के गठबंधन को छोड़ दिया जाय तो अन्य सभी दल एनडीए की नाद में ही भोग लगा रहे हैं और इस हिसाब से परिणाम की कुछ-कुछ कल्पना की जा सकती है। हालांकि, महागठबंधन की उम्मीदें सिर्फ एनडीए में पैदा हुए दरार और वोटों की लूट-खसोट तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अव्वल दर्जे के चुनावी मैनेजमेंट से नियंत्रित यह गठबंधन हर कदम जन-भावना के अनुरूप उठा रहा है। लॉकडाउन के बाद उपजी परिस्थितियों में बेरोजगारी की ज्वलंत समस्या को उठाना हो या प्रखंड-स्तर तक मे आकंठ फैले भ्रष्टाचार से मुक्ति के वायदे, महागठबंधन का हर तीर निशाने पर बैठ रहा है। नीतीश कुमार गत पंद्रह वर्षों से सत्ता में हैं सो एन्टी इनकंबेंसी का होना स्वाभाविक ही है और चुनावी राजनीति में एन्टी इनकंबेंसी को भुनाना एक मैनेजमेंट होता है जिसमें महागठबंधन फ़िलहाल सफल रहा है।

भाजपाकागेम_प्लान !

भूपेंद्र यादव के तथाकथित बाज़ीगरी के भरोसे बैठी भाजपा आसन्न चुनाव में सबसे कंफ्यूज पार्टी रही है। वोटरों की कौन कहे, इनके कार्यकर्ताओं तक को समझ नहीं आ रहा कि वे क्या करें ! कोई एनडीए के प्रति वफ़ादार बना हुआ है तो कोई लोजपा, रालोसपा या निर्दलीय प्रत्याशी में कमल की छवि ढूंढ रहा है। दरअसल, भूपेंद्र यादव ने पार्टी के मूल संघटन को ही क्षत-विक्षत कर दिया है। ‘अनिश्चित व्यवहार’ वाले नए लोगों को पार्टी से जोड़ने की इनकी अजीबोगरीब नीति ने पार्टी के बेस वोटर्स की अवहेलना के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और प्रतिक्रियास्वरूप पहली बार रिकॉर्ड संख्या में पार्टी के इन बेस वोटर्स ने पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा त्याग दी और भाजपा को ही सबक सिखाने मैदान में कूद पड़े हैं। बीजेपी के करीब चार-पांच दर्जन उपेक्षित योद्धा मैदान में एनडीए को न सिर्फ नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि इनमें से कई चुनाव जीतने की स्थिति में आ चुके हैं। भूपेंद्र यादव का मॉडल पानी मांग रहा है और भाजपा अपनी अपूर्णीय क्षति को झेल रही है।

जदयूऔरनीतीश

जदयू माने नीतीश कुमार ! चाहे महागठबंधन हो या बीजेपी, सभी के निशाने पर हैं नीतीश कुमार। लोग मानते हैं कि राज्य में भ्रष्टाचार को संगठित स्वरूप दे दिया है इन्होंने। मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा जरूर किया है इन्होंने और सबसे बड़ी बात, राज्य में लॉ एंड ऑर्डर को बहाल करना और आम लोगों में सुरक्षा भी भावना विकसित करना इनके पक्ष में जाता है। पर, बेरोजगारी दूर करने और पलायन को रोकने में इनकी असफलता इनके चुनावी भविष्य पर ग्रहण लगा रहा है। आरोप है कि पंद्रह वर्षों में एक कारखाना नहीं लगवा पाए ये। बेशक, पंद्रह वर्षों का समय कम नहीं होता और इस मामले में नीतीश फेल हैं।

जन-भावना के ख़िलाफ़ !
औद्योगिकीकरण में विफ़ल रहने पर ‘समंदर नहीं होने’ का बहाना नीतीश के विरुद्ध एक मजबूत माहौल बनाता है। तेजस्वी दस लाख लोगों को सरकारी नौकरी का भरोसा दे रहे हैं तो ये सोलर लाइट लगाने का सपना दिखा रहे हैं। स्पष्ट है कि जन-भावना को समझने में फेल हो रहे सुशासन बाबू। जिस ‘जल-जीवन-हरियाली’ को जनता भ्रष्टाचार का पर्याय मानती है उसकी चर्चा हर चुनावी मीटिंग में नीतीश कुमार बड़ा आह्लादित हो करते हैं। भाजपा के समर्थक इनपर घमंडी होने और सहयोगी पार्टी की अवहेलना का आरोप भी लगाते हैं। आरोप है कि ‘नव-सामन्तवाद’ के प्रतीक हो चुके हैं नीतीश कुमार।

महागठबंधनकामहामैनेजमेंट

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महागठबंधन तीन स्वाभाविक सहयोगियों का गठबंधन है और सीट-बंटवारे के बाद पूरी तरह एकजुट है। छोटे-मोटे और अल्प निष्ठा वाले दलों से पीछा छुड़ाकर तेजस्वी की टीम ने एक सॉलिड महागठबंधन की नींव तैयार कर ली। नीतीश से उलट, जन-भावनाओं को उठाया महागठबंधन ने। तेजस्वी जब सरकारी नौकरी की बात करते हैं तो न सिर्फ उनके समर्थक, बल्कि आमजन में भी आशा का संचार होता है। तेजस्वी उप मुख्यमंत्री के रूप में स्वयं की काबिलियत कुछ हद तक सिद्ध भी कर चुके हैं, सो पब्लिक उनपर भरोसा कर रही है। लालू यादव के जंगलराज की छाया से निकल पाने में सफलता तेजस्वी की सबसे बड़ी उपलब्धि है। तेजस्वी समझ रहे हैं कि नीतीश को सबक सिखाने वाला जनसमुह उनकी ओर देख रहा है और इसीलिए वह जात-पात और आरक्षण के मुद्दे से परहेज कर रहे हैं। कुछेक छोटे-मोटे अपवाद को छोड़, तेजस्वी अबतक सही और सटीक जा रहे हैं।

चिरागऔरकुशवाहा

आसन्न चुनाव का सबसे बड़ा रहस्य चिराग पासवान का रोल है। वे दिखाने की कोशिश कर रहे कि वे बीजेपी के गुप्त एजेंडे के हिसाब से चल रहे हैं, पर पहले चरण के चुनाव ने जता दिया कि वे हर-हाल में एनडीए का नुकसान कर रहे। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चिराग किसी बड़े गेम प्लान के मोहरे हैं। यह गेम प्लानर प्रशांत किशोर भी हो सकते हैं जिनका उद्देश्य नीतीश को सत्ता से हटाना है और इसलिए यह सबकुछ महागठबंधन की सहूलियत के अनुकूल हो रहा है। चिराग महागठबंधन और तेजस्वी के प्रति सॉफ्ट भी हैं। खैर, जो कुछ भी हो पर बीजेपी के दमदार और भूपेंद्र यादव द्वारा पीड़ित बागियों ने चिराग की सेना अच्छी-खासी सजा दी है और दस से बारह जगहों पर आज इनके लोग जीतने की स्थिति में और डेढ़-दो दर्जन जगहों पर यह एनडीए की हार सुनिश्चित करने की स्थिति में आ चुके हैं। उपेन्द्र कुशवाहा तेजस्वी द्वारा सबसे अधिक पीड़ित हुए हैं। सहनी को तो बीजेपी ने लपक लिया पर कुशवाहा नीतीश कुमार द्वारा लीड किये जाने वाले गठबंधन में जगह नहीं पा सके। फिलहाल ये लड़ाई से बाहर हैं और इनकी उपलब्धि भी दो-चार मजबूत बागियों के भरोसे है।

क्या महागठबंधन का आना तय हो गया ?

प्रथम चरण में महागठबंधन को निमंत्रण मिला है, स्वागत हुआ है और इसका आना दूसरे चरण द्वारा तय होगा, पर हवा ने रुख तेजस्वी की ओर मोर लिया जरूर है। हालांकि, दस लाख नौकरी की असलियत सभी जानते हैं। लालू के कुनबे के प्रति विश्वसनीयता भी कमोबेश वही है, पर नए विकल्प के तलाश की अकुलाहट तेजस्वी को फ़ायदा पहुंचाता नज़र आ रहा है। तेजस्वी के प्रति प्रतिबद्धता दो प्रकार की है। एक तो उनके और कांग्रेस-कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक हैं और दूसरे वे जो अभी भी एनडीए के समर्थक हैं, पर ऐसा मानते हैं कि नीतीश कुमार के घमंड को तोड़ना उनकी प्राथमिकता है। ऐसे लोग मानते हैं कि नीतीश सत्ता से हटेंगे तभी नया विकल्प सामने आएगा। कुल मिलाकर महागठबंधन फायदे लेता दिख रहा है।

क्या एनडीए की कहानी ख़तम ?

अभी जल्दबाज़ी होगी। विश्लेषक एक ख़ास जगह आकर ठहर जा रहे और वह है अति पिछड़ा और महादलित वोटर जो आज भी एनडीए और नीतीश कुमार के साथ करीब-करीब जुड़ा है। नीतीश और बीजेपी के भूपेन्द्रिकरण से नाराज़गी जतदातार सवर्णों में है, पर नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग के प्यादे अति-पिछड़े और महादलित की ताक़त पर उन्हें आज भी भरोसा है। ये साइलेंट वोटर्स हैं जो अक्सर चमत्कार करते हैं। दूसरी ओर, ओबैसी महागठबंधन के बेस वोटर्स में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। तेजस्वी ने फ़िलहाल तुष्टिकरण की कोई कोशिश की नहीं है और अल्पसंख्यक वोटर्स के लिए नीतीश बहुत अधिक अप्रिय भी नहीं हैं। ऐसे में नीतीश की कहनी को इतनी जल्द ख़त्म नहीं समझा जा सकता और फ़िलहाल मामला मेरे हिसाब से नीतीश कुमार और एनडीए के लिए 48:52 से अधिक बुरा नहीं है।

(यह मेरी दृष्टि है जो आपसे भिन्न भी हो सकती है)

(लेखक शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आलेख लेखक के फेसबुक से साभार)

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